पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१२८

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मनासक्तियोग . दानमें जो पुण्यफल बतलाया है, उस सबको पार करके योगी उत्तम आदिस्थान पाता है। २८ टिप्पनी--अर्थात् जिसने ज्ञान, भक्ति और सेवा- कर्मसे समभाव प्राप्त किया है, उसे न केवल सब पुण्यों- का फल ही मिल जाता है, बल्कि उसे परम मोक्षपद मिलता है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'अक्षर- ब्रह्मयोग' नामक आठवां अध्याय । राजविद्याराजगुह्ययोग इसमें भक्तिकी महिमा गाई है। श्रीभगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतम प्रवक्ष्याम्यनसूयवे । ज्ञानं विज्ञानसहित यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥ १ ॥ श्रीमगवान बोले- तू द्वेषरहित है, इससे तुझे मैं गुह्य-से-गुह्य अनुभव-