सेवामन्यास : शेरोमाविमानयोग , ॥८॥ अव्यक्त प्रकृतिमें विद्यमान है। मोहरहित मनुष्य इस अहंताका ज्ञानपूर्वक त्याग करता है और इस कारण मृत्युके समय या दूसरे आघातोंसे वह दुःख नहीं पाता। ज्ञानी-अज्ञानी सबको, अंतमें तो, इस विकारी क्षेत्रका त्याग किये ही निस्तार है। अमानित्वमदम्मित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । 'आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ७॥ इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च । जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् असक्तिरनभिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥९॥ मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥१०॥ अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् । एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥११॥ अमानित्व, अदंभित्व, अहिंसा, क्षमा, सरलता, आचार्यकी सेवा, शुद्धता, स्थिरता, आत्मसंयम, इंद्रियोंके विषयोंमें वैराग्य, अहंकाररहितता, जन्म, मरण, जरा, व्याधि, दुःख और दोषोंका निरंतर भान, पुत्र, स्त्री और गृह आदिमें मोह तथा ममताका अभाव, प्रिय और अप्रियमें नित्य समभाव, मुझमें अनन्य ध्यानपूर्वक -
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