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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१८१

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भी है। तथापि सबको धारण करनेवाला है। वह गुणरहित होनेपर भी गुणोंका भोक्ता है। १४ बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च । सूक्ष्मत्वात्सदविशेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥१५॥ वह भूतोंके बाहर है और अंदर भी है। वह गतिमान है और स्थिर भी है। सूक्ष्म होनेके कारण वह अविज्ञेय है। वह दूर है और समीप १५ टिप्पणी-जो उसे पहचानता है वह उसके अंदर है। गति और स्थिरता, शांति और अशांति हम लोग अनुभव करते हैं और सब भाव उसीमेंसे उत्पन्न होते हैं, इसलिए बह गतिमान और स्थिर है। अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् । भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं प्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥१६॥ भूतोंमें वह अविभक्त है और विभक्त-सरीखा भी विद्यमान है। वह जाननेयोग्य (ब्रह्म) प्राणियोंका पालक, नाशक और कर्ता है। ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते । शानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥१७॥ ज्योतियोंकी भी वह ज्योति है, अंधकारसे वह पर कहा जाता है । शान वही है, जाननेयोग्य वही है