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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१८३

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तेरावांमध्यस्य : विनामयोग मायाके नामसे पुकारते हैं। पुरुष जीव है। माया अर्थात् मूलस्वभावके वशीभूत हो जीव सत्व, रजस् या तमस्से होनेवाले कार्योका फल भोगता है और इससे कर्मानुसार पुनर्जन्म पाता है। उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः । परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥२२॥ इस देहमें स्थित जो परमपुरुष है वह सर्वसाक्षी, अनुमति देनेवाला, भर्ता, भोक्ता, महेश्वर और परमात्मा भी कहलाता है। २२ य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृति च गुणैः सह । सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥२३॥ जो मनुष्य इस प्रकार पुरुष और गुणमयी प्रकृति- को जानता है, वह सब प्रकारसे कार्य करता हुआ भी फिर जन्म नहीं पाता। २३ टिप्पड़ी-२, ९, १२ और अन्यान्य अध्यायोंकी सहायतासे हम जान सकते हैं कि यह श्लोक स्वेच्छाचार- का समर्थन करनेवाला नहीं है, बल्कि भक्तिकी महिमा बतलानेवाला है। कर्ममात्र जीवके लिए बंधनकर्ता हैं, किंतु यदि वह सब कर्म परमात्माको अर्पण कर दे तो वह बंधनमुक्त हो जाता है और इस प्रकार जिसमेंसे कर्तृत्वरूपी अहंभाव नष्ट हो गया है और जो .