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पुरुषोत्तमयोग भमवानने इस अध्यायमें क्षर और अक्षरसे परे अपना सतम स्वरूप समझाया है। भीमगवानुवाच ऊर्ध्वमूलमषःशासमश्वत्थं प्राहरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥१॥ श्रीमगवान बोले- जिसका मूल ऊंचे है, जिसकी शाखा नीचे है और वेद जिसके पत्ते हैं, ऐसे अविनाशी अश्वत्थ वृक्षका बुद्धिमान लोगोंने वर्णन किया है, इसे जो जानते हैं वे वेदके जाननेवाले ज्ञानी हैं। १ टिप्पली-'श्वः'का अर्थ है आनेवाला कल । इस- लिए अश्वत्थका मतलब है आगामी कलतक न टिकने- वाला क्षणिक संसार । संसारका प्रतिक्षण रूपांतर हुआ करता है इससे वह अश्वत्थ है; परंतु ऐसी स्थितिमें वह सदा रहनेवाला होनेके कारण तथा उसका मूल ऊर्ध्व अर्थात् ईश्वर है, इस कारण वह अविनाशी है। उसमें यदि वेद अर्थात् धर्मके शुद्ध ज्ञानरूपी पत्ते