पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२०१

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साहका अन्याय : पुलोतमयोग सुखदुःखरूपी द्वंद्वोंसे मुक्त है वह ज्ञानी अविनाशी पदको पाता है। ५ न तद्भासयते सूर्यो न शशाको न पावकः । यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥६॥ वहां सूर्यको, चंद्रको या अग्निको प्रकाश नहीं देना पड़ता। जहां जानेवालेको फिर जन्मना नहीं पड़ता, वह मेरा परमधाम है। ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥७॥ मेरा ही सनातन अंश जीवलोकमें जीव होकर प्रकृतिमें रहनेवाली पांच इंद्रियोंको और मनको आक- र्षित करता है। शरोरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः । गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥ ८॥ (जीव बना हुआ यह मेरा अंशरूपी) ईश्वर जब शरीर धारण करता है या छोड़ता है तब यह उसी तरह (मनके साथ इंद्रियोंको) साथ ले जाता है जैसे वायु आसपासके मंडलमेंसे मंध ले जाता है। थोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च । अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥९॥ और वह कान, आंख, त्वचा, जीभ, नाक और .