पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२१०

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चालतियोग - कौन है ? मैं यज्ञ करूंगा, दान दूंगा, मौज करूंगा,- अज्ञानसे मूढ़ हुए लोग ऐसा मानते हैं और अनेक भ्रांतियोंमें पड़े, मोहजालमें फंसे, विषयभोगमें मस्त हुए अशुभ नरकमें गिरते हैं। १३-१४-१५-१६ आत्मसंभाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः। यजन्ते नामयजैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ॥१७॥ अपनेको बड़ा माननेवाले, अकड़बाज, धन तथा मान के मदमें मस्त हुए (ये लोग) दंभ से और विधि- रहित नाममात्रके ही यज्ञ करते हैं। १७ अहंकारं बलं दपं कामं क्रोधं च संश्रिताः । मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ॥१८॥ अहंकार, बल, घमंड, काम और क्रोधका आश्रय लेनेवाले, निंदा करनेवाले और उनमें तथा दूसरोंमें रहनेवाला जो मैं, उसका वे द्वेष करनेवाले हैं। तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् । क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥१९॥ इन नीच, द्वेषी, क्रूर अमंगल नराधमोंको मैं इस संसारकी अत्यंत आसुरी योनिमें ही बारंबार डालता - आसुरीं योनिमापना मूढा जन्मनि जन्मनि । मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यषमा गतिम् ॥२०॥