पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२११

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सोलहवां अध्याय : चारसंधिमानयोग हे कोंतेय ! जम्म-जन्म आसुरी योनिको पाकर और मुझे न पानेसे ये मूढ़ लोग इससे भी अधिक अषम गति पाते हैं। २० त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥२१॥ आत्माका नाश करनेवाले नरकके ये विविध द्वार हैं-काम, क्रोध और लोभ । इसलिए इन तीनका मनुष्यको त्याग करना चाहिए । २१ एतैविमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारंस्त्रिभिर्नरः । आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ॥२२॥ हे कौंतेय ! इस त्रिविध नरकद्वारसे दूर रहनेवाला मनुष्य आत्माके कल्याणका आचरण करता है और इससे परम गतिको पाता है। २२ यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः । न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥२३॥ जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर स्वेच्छासे भोगों- में लीन होता है वह न सिद्धि पाता है, न सुख पाता है, न परमगति पाता है। २३ टिप्पनी-शास्त्रविधिका अर्थ धर्मके नामसे माने जानेवाले ग्रंथोंमें बतलाई हुई अनेक क्रियाएं नहीं, बल्कि