पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२१२

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१९८ अनासक्तियोष अनुभव-ज्ञानवाले सत्पुरुषोंका अनुभव किया हुआ संयम मार्ग है। तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थिती। ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥२४॥ इसलिए कार्य और अकार्यका निर्णय करने में तुझे शास्त्रको प्रमाण मानना चाहिए। शास्त्रविधि क्या है, यह जानकर यहां तुझे कर्म करना उचित २४ टिप्पणी-जो ऊपर बतलाया जा चुका है, शास्त्र- का वही अर्थ यहां भी है। सबको निज-निजके नियम बनाकर स्वेच्छाचारी न बनना चाहिए, बल्कि धर्मके अनुभवीके वाक्यको प्रमाण मानना चाहिए, यह इस श्लोकका आशय है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'दैवासुर- संपदविभागयोग' नामक सोलहवां अध्याय ।