पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२१५

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७ दंभ और अहंकारवाले, काम और रागके बलसे प्रेरित जो लोग शास्त्रीय विधिसे रहित घोर तप करते हैं, वे मूढ़ लोम शरीरमें स्थित पंच महाभूतोंको और अंतःकरणमें विद्यमान मुझको भी कष्ट देते हैं। ऐसोंको आसुरी-निश्चयवाला जान । आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः । यज्ञस्तपस्तया दानं तेषां भेदमिमं शृणु ॥७॥ आहार भी तीन प्रकारसे प्रिय होता है। उसी प्रकार, यज्ञ, तप और दान (भी तीन प्रकारसे प्रिय होता) है। उसका यह भेद तू सुन । आयुःसत्त्वबलारोग्य- सुखप्रीतिविवर्धनाः। रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः आयुष्य, सात्त्विकता, बल, आरोग्य, सुख और रुचि बढ़ानेवाले, रसदार, चिकने, पौष्टिक और मनको रुचिकर आहार सात्त्विक लोगोंको प्रिय होते हैं। ८ कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरुक्षविदाहिनः । आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥९॥ तीखे, खट्टे, खारे, बहुत गरम, चरपरे, रूखे, दाहकारक आहार राजस लोगोंको प्रिय होते हैं ॥८॥