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अहंकारके वश होकर 'मैं युद्ध नहीं करूंगा' ऐसा तू मानता हो तो यह तेरा निश्चय मिथ्या है। तेरा स्वभाव ही तुझे उस तरफ़ बलात्कारसे घसीट ले जायगा। स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा । कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात् करिष्यस्यवशोऽपि तत् ॥६॥ हे कौंतेय ! अपने स्वभावजन्य कर्मसे बद्ध होनेके कारण तू जो मोहके वश होकर नहीं करना चाहता वह बरबस करेगा। ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति । भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥६१॥ हे अर्जुन ! ईश्वर सब प्राणियोंके हृदयमें बास करता है और अपनी मायाके बलसे उन्हें चाकपर चढ़े हुए घड़ेकी तरह घुमाता है। तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन तत्प्रसादात्परां शान्ति स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥६२।। हे भारत! सर्वभावसे तू उसकी शरण ले। उसकी कृपासे परमशांतिमय अमरपदको पावेगा। ६२ भारत ।