पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सरा ममाय: सांस्खयोग युद्ध कर। अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोअमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥१८॥ नित्य रहनेवाले, अपरिमित और अविनाशी देहीकी ये देहें नाशवान कही गई हैं, इसलिए हे भारत ! तू १८ य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् । उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।।१९।। जो इसे मारनेवाला मानता है और जो इसे मारा हुआ मानता है, वे दोनों कुछ जानते नहीं हैं। यह (भात्मा) न मारता है, न मारा जाता है। न जायते म्रियते वा कदाचिन्- नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥२०॥ यह कभी जन्मता नहीं है, मरता नहीं है। यह था और भविष्यमें नहीं होगा ऐसा भी नहीं है। इसलिए यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है, शरीर- का नाश होनेसे इसका नाश नहीं होता । २० वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ।।२१।। हे पार्थ ! जो पुरुष आत्माको अविनाशी, नित्य,