Yo अनासक्तिबोग वाणी सुनेंगे । जिसका मन अपने वशमें है वह, जिसे हम लोग विषय मानते हैं, उसमें रस नहीं लेता। ऐसा मनुष्य आत्माको शोभा देनेवाले ही कर्म करेगा। ऐसे कर्मोंका करना कर्म-मार्ग है । जिसके द्वारा आत्मा- का शरीरके बंधनमें छूटनेका योग सधे उसका नाम कर्म- योग है। इसमें विषयासक्तिको स्थान हो ही नहीं सकता। नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो हकर्मणः । शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धदकर्मणः ॥ ८ ॥ इसलिए त नियंत कर्म कर। कर्म न करनेसे कर्म करना अधिक अच्छा है। तेरे शरीरका व्यापार भी कर्म बिना नहीं चल सकता। टिप्पसी--'नियत' शब्द मूल श्लोकमें है। उसका संबंध पिछले श्लोकसे है। उसमें मनद्वारा इंद्रियोंको नियममें रखते हुए संगरहित होकर कर्म करनेवालेकी स्तुति है। अतः यहां नियत कर्मका अर्थात् इंद्रियोंको नियममें रखकर किये जानेवाले कर्मका अनुरोध किया गया है। यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः । तदर्थ कर्म कोन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ॥ ९ ॥ यज्ञार्थ किये जानेवाले कर्मके अतिरिक्त कर्मसे ८
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