बीचा प्रभाव : मानकर्मसंन्यासयोग हैं, उसके कर्म ज्ञानरूपी अग्निद्वारा भस्म हो गये हैं; ऐसेको ज्ञानी लोग पंडित कहते हैं। त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः । कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥२०॥ जिसने कर्मफलका त्याग किया है, जो सदा संतुष्ट रहता है, जिसे किसी आश्रयकी लालसा नहीं है, वह कर्ममें अच्छी तरह लगे रहनेपर भी, कहा जा सकता है कि वह कुछ भी नहीं करता। २० टिप्पली--अर्थात् उसे कर्मका बंधन भोगना नहीं पड़ता। निराशर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः । शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ॥२१॥ जो आशारहित है, जिसका मन अपने वशमें है, जिसने सारा संग्रह छोड़ दिया है और जिसका शरीर ही भर कर्म करता है, वह करते हुए भी दोषी नहीं होता। २१ टिप्पली--अभिमानपूर्वक किया हुआ कुल कर्म चाहे जैसा सात्त्विक होनेपर भी बंधन करनेवाला है। वह जब ईश्वरार्पण बुद्धिसे, बिना अभिमानके, होता है तब बंधनरहित बनता है। जिसका 'मैं' शून्यताको प्राप्त हो गया है, उसका शरीरभर ही कर्म करता है । सोते 1
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