पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/८१

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घोषा मध्याय: शानकर्मसंन्यासयोग और नम्रतापूर्वक विवेकसहित बारंबार प्रश्न करके जानना। वे तेरी जिज्ञासा तृप्त करेंगे। ३४ टिप्पसी-ज्ञान प्राप्त करनेकी तीन शर्ते-प्रणि- पात, परिप्रश्न और सेवा इस युगमें खूब ध्यानमें रखने योग्य हैं। प्रणिपात अर्थात् नम्रता, विवेक; परिप्रश्न अर्थात् बारंबार पूछना; सेवारहित नम्रता खुशामदमें शुमार हो सकती है । फिर, ज्ञान खोजके बिना संभव नहीं है, इसलिए जबतक समझमें न आवे तबतक शिष्यका गुरुसे नम्रतापूर्वक प्रश्न पूछते रहना जिज्ञासा- की निशानी है। इसमें श्रद्धाकी आवश्यकता है। जिसपर श्रद्धा नहीं होती उसकी ओर हार्दिक नम्रता नहीं होती, उसकी सेवा तो हो ही कहांसे सकती है ? यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव । रोन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ।।३५।। यह ज्ञान पानेके बाद हे पांडव ! तुझे फिर ऐसा मोह न होगा। इस ज्ञानके द्वारा तू भूतमात्रको आत्मा- में और मुझमें देखेगा। टिप्पणी-'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे'का यही अर्थ है । जिसे आत्मदर्शन हो गया है वह अपनी और दूसरेकी आत्मामें भेद नहीं देखता ।