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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/९२

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अनासक्तियोग टिप्पखी--अंतर्मुख होनेवाला ही ईश्वरका साक्षा- कार कर सकता है और बही परम आनंद पाता है। विषयोंसे निवृत्त रहकर कर्म करना और ब्रह्मसमाधिमें रमण करना ये दो भिन्न वस्तुएं नहीं हैं, वरन् एक ही वस्तुको देखनेकी दो दृष्टियां हैं--एक ही सिक्केकी दो पीठे हैं। ये हि सस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते । आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥२२॥ विषयजनित भोग अवश्य दुःखोंके कारण हैं। हे कौंतेय ! वे आदि और अंतवाले हैं । बुद्धिमान । मनुष्य उनमें नहीं फंसता । २२ शवनोतीहैव यः सोढु प्राक्शरीरविमोक्षणात् । कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥२३॥ देहांतके पहले जिस मनुष्यने इस देहसे ही काम और क्रोधके वेगको सहन करनेकी शक्ति प्राप्त की है उस मनुष्यने समत्वको पाया है, वह सुखी है । २३ टिप्पणी--मरे हुए शरीरको जैसे इच्छा या द्वेष नहीं होता, सुख-दुःख नही होता, वैसे जो जीवित रहते भी मृतसमान, जड़भरतकी भांति देहातीत रह. सकता है वह इस संसारमें विजयी हुआ है और वह वास्तविक मुखको जानता है।