पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/९३

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पापा मम्माप : कर्मसंन्यासयोग योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्योतिरेव यः । स योगी ब्रह्म निर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥२४॥ जिसे आंतरिक आनंद है, जिसके हृदयमें शांति है, जिसे निश्चितरूपसे अंतर्ज्ञान हुआ है वह ब्रह्मरूप हुआ योगी ब्रह्मनिर्वाण पाता है। २४ लभन्ते ब्रह्म निर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः । छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥२५॥ जिनके पाप नष्ट हो गए हैं, जिनकी शंकाएँ शांत हो गई हैं, जिन्होंने मनपर अधिकार कर लिया है और जो प्राणीमात्रके हितमें ही लगे रहते हैं, ऐसे ऋषि ब्रह्म- निर्वाण पाते हैं। २५ कामक्रोधवियुक्ताना यतीनां यतचेतसाम् । अभितो ब्रह्म निर्वाण वर्तते विदितात्मनाम् ।।२६॥ जो अपनेको पहचानते है, जिन्होंने काम-क्रोधको जीता है और जिन्होंने मनको वश किया है, ऐसे यतियों- को सर्वत्र ब्रह्मनिर्वाण ही है। २६ स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥२७॥ बतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मनिर्मोक्षपरायणः विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥२८॥ बाह्म विषयभोगोंका बहिष्कार करके, दृष्टिको