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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१०२

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वह उसके मिठास को भूल सकता है? यही प्यार मैं इसको दूगा। जैसे प्यासे को पानी पीने से उसके प्राण शीतल हो जाते है, जैसे अन्न पाकर भूखों की आखों मे ज्योति आ जाती है, उसी तरह इसे प्यार पाकर सुख मिलेगा। वह मुझे प्यार करेगा। प्यार क्या योंही मिलता है? कितने मरे, कितने खपे, मैं प्यार को पाऊँगा। गुणों पर प्यार होता है, ठीक है। उसे प्रेम कहते हैं। एक प्यार चाहना का होता है, उसे मोह कहते हैं। यह प्यार बासनाहीन है, इसमे न गुण देखे जाते है, न दोष, न नीच न ऊँच, न पाप न पुण्य। केवल दुःख देखा जाता है। चाहे जो हो, चाहे जिस कारण से दुःखी हो, उसे प्यार करना, इस प्यार का एक प्रकार है। इस प्रकार को कहते है दया। भगवान् दयालु है। दया भगवान् की नियामक सत्ता है। भगवान् के पालन मे दया है, संहार मे भी दया है। यही दया उसे अतुल्य न्यायी बनाये है। जो न प्यार के, न आदर के, न प्रतिष्ठा के, न काम के पात्र है, वे सब दया के पात्र है। अच्छी तरह समझ गया हूँ। देखते ही पहचान लूंगा। छुटते ही दया करूँगा। यह देखो, मन मे कैसा हर्ष उत्पन्न हुआ, आत्मा मे कैसा सतोष मिला। यह दयाधन का प्रताप है। हे प्रभु! मेरे हृदय में दया को स्थाई बना। दया मेरे नेत्रों मे बसे। दया मेरे पथ का प्रकाश हो।


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