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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१०४

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कहाँ था? इसी की खोज में बूढ़ा हुआ। अब मिला है? वाह री दुनियां! वाह रे संसार! वाह री माया! वाह री चमक! अच्छा झाँसा दिया, अच्छा भटकाया, अच्छा उल्लू बनाया, अच्छा फन्दे मे फँसाया। समय नष्ट गया अलग और बदले मे मिला ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, क्रोध, मत्सर! रामराम! भगवान् को धन्यवाद है। अन्त मे मार्ग मिला तो! वाह! कैसा सीधा मार्ग है, कैसी शान्ति है, कैसा सुख है। कुछ चिंता नहीं, किसी बात की चिन्ता नहीं। भूख लगी है तो लगा करे, हम क्या करें? मिलेगा तो खा लेगे। शीत लगता है तो लगा करे, उसके लिये क्या हम चिंता करे? हम नहीं, हमसे यह न होगा। हम किसी के लिये कुछ न करेंगे। हम तो बादशाह हैं।

अरे भोले भाइयो! यह सब क्या लाये हो? हम इसका क्या करेगे? क्या कहा? सम्मानार्थ लाये हो? हो हो हो! हमे सम्मान का क्या करना है? ना, हम न लेंगे। हम क्या भिखारी है? हम बादशाह हैं। तुम्हें लेना हो तो इससे लो। तुम हीन, दीन, दुखिया लोगो! हाय! कैसे अभागे हो---काम क्रोध चिता के ऋणी, लोभ मोह के दास, तुच्छ प्राणी! आओ, इधर आओ। यहाँ शान्ति है। इधर देखो। अपनी ओर


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