पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/११४

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लालस

ना! उसका नाम नहीं बताऊँगा। लज्जा जीने न देगी। वह नाम जहरे कातिल है। इतने दिन हुए, पर आज तक उससे रोम रोम जल रहा है। विचार शक्ति छितरा कर बिखर गई थी, बुद्धि पुरानी रुई की तरह उड़ गई थी। मेरे सुख और दुःख के बीच वही एक नावो का निर्मूल पुल था। जब मैं लालसा की नदी के किनारे पहुँचा तो देखा---जहाँ मैं खड़ा हूँ उसके चार ही क़दम के फासले पर वह पुल है, मेरा कसूर क्या था? इतने नजदीक पुल को छोड़ कर कौन तैर कर पार करेगा? पार करने पर---बस वह दिन है और आज का दिन है।