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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/११७

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दुपहरी के सूर्य की तरह ज्वलन्त नेत्र दिखा कर चली गई। कलेजा तक झुलस गया। यही दुनिया है। इसी मे रहने को प्राणी क्या क्या करता है। यही दुनिया का अन्त है। जाने वालों के लिये दुनिया का यही प्यार है। वाह री दुनिया! और वाह रे तेरा अन्त!!! १०१