सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

न हास्य था---केवल एक अस्फुट ध्वनि थी। चौदह वर्ष का सुपरिचित हाथ ऊपर को उठा---चौदह वर्ष प्रथम मैंने उसे जिस उछाह और प्रेम से पकड़ा था---उससे भी अधिक उछाह और प्रेम से उसे मैने अपने दोनों हाथों मे पकड़ा। पर अब उसमें वह गर्मी नहीं रही थी। रस की बूँद सूख जाने पर भी वह हॅसी। अटल अटूट हास्य था। उसमे स्पन्दन नहीं था, संकोच नहीं था, अस्थिरता नहीं थी, परिवर्तन नहीं था। मै उसी मे डूब गया। पीछे से एक हाहाकार उठा---और क्षण भर मे घर का वातावरण दिगन्तव्यापी हाहाकार से भर गया!!!






११४