सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आँसू

तुमने, मृत्यु के समान ठण्डी और आशा के समान लम्बी निश्वासों के साथ बाहर आकर, उत्तप्त जल कण क्या पाया? इतना भी सह सके? छी, आप अधीर बने, मुझे भी अधीर बनाया, आखिर आब खोई।

तुमने कोमल हृदय के गम्भीर प्रदेश में जन्म लेकर इतनी गर्म और उतावल प्रकृति कहाँ पाई? और देखते ही देखते आंखों में आकर एकाएक क्या देख कर पानी पानी हो गये? निर्दयी! हृदय का सारा रस निचोड़ लाये, क्या ऑखों के तेज को बुझाने का इरादा था?