पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१४२

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शरच्चंद्र

शरच्चन्द्र प्यारे! आज कुसमय मे वहाँ क्यों आये हो? जाओ, धीरे से खसक जाओ, हृदय सो रहा है आहट मत करो, जाग जायगा। फिर उसे सम्हालना और सुलाना कठिन हो जायगा। इतना हॅसते क्यों हो? निष्ठुर! यही क्या तुम्हारा सुधावर्षण है? यही क्या तुम्हारा सौन्दर्य है? जब दिन थे---तब मैंने तुमसे होड़ बदी थी, तुम्हीं थक कर बैठ गये थे। आज उसी का बदला लेने आये हो? क्षुद्र! विपत्ति में उपहास करते हो? छी.

उस दिन गङ्गा के उपकूल पर, जब कलकलनिनादिनी गङ्गा