पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१४६

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उस दिन

उस दिन, जब मैंने तुम्हे ग्रहण किया था अपना घर द्वार धन धरती सव तुम्हे दिया था। मेरी प्रतिष्ठा, आबरू, महत्व, शौर्य सब तुम्हारा हुआ था। मेरी शक्ति, सत्ता, स्वप्न और तेज सब तुम्हे मैने दिया था, और दिया था अपना प्राण और उस का सर्वाधिकार।

तुमने न आँखे खोल कर उस महादान को देखा, न एक शब्द बोलीं, तुम चुपचाप अपने वहुमूल्य वस्त्रों और प्रच्छिन्न हृदय मे उल्लास और आनन्द से तप रहीं थी।

बहिनों ने सुगन्धित द्रव्यों से तुम्हारी केशराशि को सीचा और पुष्पों से सेज को सजाया था।