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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५५

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अतर्क्य लोक में

उस अतर्क्य लोक मे क्या तुम मुझे कभी स्मरण करती हो? उस अनन्त पथ के उस छोर पर, जहाँ प्रवाहित रात्रियाँ वनी रहती होंगी---इस लोक के प्रकाश का कोई कण होगा? उन अघोर चक्षुओं और उस स्निग्ध सौन्दर्य का उसके विना कैसे विकास होता होगा?

हाय, मैं यह नहीं कह सकता कि मैं तुम्हारे प्रति विश्वासनीय हूँ। परन्तु तुम्हारा वह प्राचीन सौरभ मेरो रक्षा करता है। कितने दिन रात और वर्ष व्यतीत हो गये हैं और हो रहे हैं, परन्तु तुम मेरे हृदय के वैसी ही निकट हो। तुम क्या अब