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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५६

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भी अपने हृदय में मेरे विचार रखती हो? तुम छिप गई हो। पर मैं तुम्हारी स्मृति का स्वप्न सुख तो पाता ही हूँ।

यद्यपि बहुत से फूल फूलते और तारे चमकते है। पर मैं तो तुम्हारे उन विषादपूर्ण नेत्रों का सदा जाग्रत स्वप्न देवता हूँ जिन्हे मैं कभी नहीं भूलूँगा।

प्रिये, ठहरो, मेरा जीवन और यौवन खिसक कर तुम तक आ रहा है।







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