पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५७

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एक किरण

प्रेम रूपी ऊषा की एक किरण फूटी, और जीवन जगत पर छाए हुए अन्धकार पर प्रकाश की एक क्षीण रेखा पड़ी। जीवन जाग उठा, जैसे ग्रीष्म के प्रभात मे गुलाब खिल उठता है। परन्तु भोग वाद एक बादल का टुकड़ा बनकर आया और प्रभात का विकास होते २ समस्त आकाश मेघाच्छादित हो गया।

तुम कब से मेरे हृदय के निकट थीं, मुझे कुछ भी स्मरण नहीं। उसी ऊषा के क्षणिक प्रकाश मे मैने तुम्हे अचानक देखा, तुम सो रही थीं। तुम्हारी स्निग्ध ऑखे कुछ बन्द थीं और ओष्ठ सम्पुट थोड़ा खुला था।