पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५८

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तुम प्रत्येक प्रश्वास के साथ मेरा नाम ले रही थीं, क्षण २ मे तुम्हारे मुख पर लाली और आनन्द की प्रभा फूट पड़ती थी---मैं तुम्हारे स्वप्न सुख को समझ रहा था।

तभी, भोग वाद ने ठण्डी और नन्ही बूंद गिराईं और तुम्हारी आँखों और होठों की मनोहरता शोकपूर्ण हो गई।

आह, मैंने तुम्हे यह भेद कभी नहीं बताया कि मैने तुम्हे गोद मे लेकर जगाने की कितनी चेष्टा की थी।






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