पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५९

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तुम कहाँ हो

तुम कहाँ हो? तुम्हारा सौरभ और सौजन्य भी क्या तुम्हारे साथ है? मै वायु के झोकों से तुम्हारा पता पूछता हूँ, मेरा हृदय टूट गया है, लेखनी घिस गई है और भाव बिखर गये है। लोग मुझे देखते है पर समझ नहीं पाते। सन्ध्या होते ही ज्वाला का ज्वार उठता और मैं वेदना मे डूब जाता हूँ।