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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६१

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प्रिये, क्या तुम आ रही हो?

वह कौन प्रस्फुटित बालिका जल की गगरी बगल में दबाए जा रही है।

वह कौन प्ररदा पुत्र को हाथों मे उठाकर उसका चुम्बन मनोद्यत पति क करा रही है।

अरे! यह तो तुम्हारी सखी••••••••

ओ प्रिये, जरा देखो तो, ये सन्ध्या को फिर मिलेंगे।

वह दूल्हा किस सजधज से व्याहने जा रहा है, साह लग तो लग गया? स्त्रियाँ घर घर गीत गा रही है।

ये चट्टाने शताब्दियों से मिली हुई है, फिर प्रिये, क्या हम नहीं मिलेगे?

यदि तुम न आओगी-तो आनन्द के अतीत की स्मृति कैसी शोकमयी बन जावेगी।