पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६२

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बसन्त

प्रिये, बसन्त आया है। सारे पत्ते झड़ गये हैं; और वृक्षों में नई कोंपलें निकल आई हैं।

हूबहू तुम्हारे उत्फुल्ल हास्य पूरित अधरोष्ठ की भॉति यह गुलाब खिला है। यह फूल से भरी डाली तुम्हारे शोभनीय मृदुल गात की भॉति झंझावात में झूम रही है। मैं इसे छुऊँगा नहीं। पर मैं यहीं बैठा रहूँगा जब तक यह सुन कर झड़ न जाय।