पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६६

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भी अब साहस नहीं कर सकता। मुझे अब प्यार नहीं, जरा-सा विश्राम भर चाहिए--किन्तु उस श्वास और स्पन्दनहीन शीतल वक्ष के निकट।








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