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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१७२

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वेदना

हृत्पटल के उस घाव की वेदना पर, जो अब पुराना पड़ गया है क्या तुम द्रवित होती हो? मैं प्रतिक्षण, प्रत्येक श्वास में उसी वेदना के सहारे जी रहा हूं, जैसे अफीमची अफीम की कड़वी चुस्की पीकर जीता है। बह वेदना अफीम ही की भॉति कड़वी और ज्ञानतन्तुओं को सुन्न कर देने वाली है। उसके नशे की झोंक में मैं प्रत्यक्ष देखता हूॅ कि हृदय-सरोवर में अकेला ही एक कमल पुष्प खिला खड़ा है, तब मैं सोचता हूॅ -- मेरे समान भाग्यशाली इस पृथ्वी पर कौन है?