पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१८६

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धूल

ओह, उन चरणों के निकट की धूल कितनी सुखी है, इसमे से एक कण इधर उड़ कर आने दो, प्रिये, मैंने उसके लिये कब से आँखें बिछा रखी हैं।

मुझे उन शीतल चरणों के चुम्बन का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ था -- अब मैं उस रजकण को चूमकर ही यह साध पूरी करूँगा।