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देखा, जल और रजकण किस तरह परस्पर प्रम मे मग्न है। जल तो बहा जा रहा है और रजकण आ आद्रभाव से पीछे लुढ़क रहा है। सुना था रजकण मे स्नेह का सर्वथा अभाव है।
निश्चय ही कहीं कुछ छिपा है। वहाँ, जहॉ-आकाश जलराशि में डूब जाता है, यह रजकण पहुँच कर अवश्य ही कुछ प्राप्त करेगा।