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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/२०६

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कोमलना उसे अर्पण की--वह तब भी नहीं आया। मैंने अच्छी तरह फिर सोचा--वह अवश्य यश का दास है मैंने यश संचित किया--और जीवन उसके अर्पण कर दिया, पर वह नही आया--नहीं आया।।

उसके बाद, उस दिन मैं चुपचाप बैठा था, तब आधी रात के समय वह आया। वह हॅस रहा था; उसने मेरे चरण चूमे और उन्हे गोद में लेकर बैठ गया।

मैंने मान करके कहा--अभिमानी अब किस लिये आये हो? चले जाओ, मै तुमसे घृणा करता हूँ। उसने कहा--क्या तुमने कभी मुझे बुलाया था?

'पापिष्ठ, मैने जीवन भर तुझे खोजा, उस मववधू के अंचल मे, उस धन की राशि मे, उस अगाध ज्ञान मे, धवलयशोराशि में? तुम्हारे ही कारण मैंने अपना सर्वस्व इस पाखण्ड मे लुटाया। उसने हँस कर कहा---क्या मैं तुम्हारी नवेली का गुलाम था? तुम्हारे धन का लोभी था, तुम्हारे ज्ञान और यश का भूखा था? मूर्ख, मै तो सदा यहीं पास मे रहा, एक बार भी बुलाते तो चला आता।

मैं रोने लगा। वह जोर से हँसा और गले से लिपट गया।