पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/२०८

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नहीं देखता सुनता? हजारों लाखों करोड़ों-अरबों मनुष्यों मे तू निराला है। तू केवल आनन्द और मस्ती मे सदा स्नान करता है। तू अनोखा अपाहज है। अनहोना अभागा है, निराला निराला है। तेरे ऊपर हमारा समस्त विज्ञान और सावधानता न्योछाबर है। तुझे निर्दोष बच्चे की तरह निस्संकोच, नग्न देख कर हम लाज से मरे जाते हैं। हाय, हम तो लाख तरह अपने को ढकते है--फिर भी सव कुछ उघड़ जाता है। हे चैतन्य मूढ़, हे प्रकृत गुरु, ज़रा सामने खड़ा रह, मैं चेष्टा करके देखता हूँ कि तुझे देखकर, मै कुछ देख सकता हूँ या नहीं।

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