पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/२१५

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नीरव-रव

उस दिन मैंने उसे सुना। कैसा भीषण था। जगत उसे नहीं सुन सकता। वह उसकी घोर ध्वनि से बहरा होगया है। जिस समय इन्द्रियों के बन्धन से ज्ञान मुक्त हुआ और विश्वव्यापी वातावरण में उनकी कला विस्फारित हुई, एकाएक मालूम हुआ कि वह अनवरत ध्वनि, अप्रतिहत गूज, विश्व के वातावरण में भर रही है, उसका केवल एक ही स्वर है एक ही सम है, न उममे गान न ताल, विश्व मानो उसमे डूब रहा है। जैसे सूर्य के रग नही दीखते, जैसे दिन मे तारे नहीं दीखते, उसी तरह क्षुद्र इन्द्रियों उसे नहीं सुन सकतीं, वे उसमें डूबी पडी है। विश्व के वातावरण से बहुत दूर तक वह एक ठोस द्रव की भॉति मूतिमान ओत प्रोत हो रहा है, उसमें एक