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वियोग
वे मुझे महाशय कहकर पुकारते थें और मैं उन्हें हरीश कहा करता था। उनका पूरा नाम तो हरिश्चन्द्र था, पर मै प्यार से उन्हें हरीश कहा करता था। बचपन से जब कि वे नंगे होकर नहाया करते थे―तब तक, जब तक कि वे बड़े भारी इन्जीनियर हुए, मैंने बराबर उन्हें इसी नाम से पुकारा। इन्जी- नियर होने के ९ दिन बाद ही तो वे मरगये!
बहुत दिन बीत गये हैं धुँँधली सी याद है। मैं अपने घर के पिछवाड़ी, गेद बल्ला खेल रहा था, रुई की गेंद थी