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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/४०

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तुम्हारी वह कुलबुलाहट...चुलबुलाहट...कहाँ गई? अब क्यों इस तरह सुस्त सिर नीचा किये बैठे हो। मेरे सर्वनाश- कारी वंचक! मैं तुम्हें दया करके छोडूँँगा नहीं।

किसी की भी नहीं सुनते थे, ऐसे धुन के अन्धे हो गये थे। हँसी रुकती ही न थी, चैन पड़ता ही नहीं था। इतना रोका था, धमकाया था, फटकारा था। पर सब चिकने घड़े पर पानी की तरह ढल गया? लो अब बैठे बैठे रोओ।










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