पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/४३

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हुआ। मेरा मानव जीवन धिक्कार हुआ। पर मुझे यह कभी न मालूम था कि ऐसा उत्तरदायित्व भी तुच्छ स्त्रियों पर आ जाता है। अनेकों की रक्षा में समर्थ आप? आपका सुख दुःख मेरे हाथ मे? नहीं नहीं मुझे इतना न दवाइये। इतना बोझ सहने की शक्ति मुझमे नहीं है। मूर्खा अबला मे और कितना बल होगा? आप कहे -- तो मैं आपका नाम लेकर गङ्गा में डूब मरूॅ, या नाम जप जप कर भूखी प्यासी मर जाऊॅ। जरूरत हो तो चमडी की जूती बनवा लीजिये। मोल बेच दीजिये। पर। पर मुझसे सुख मत मॉगिये, मुझसे सहयोग न होगा। सुख एक तो मेरे पास है ही नहीं -- दूसरे, जो है भी-वह जूठा, ठण्डा और किरकिरा है -- आपके योग्य नहीं है। आप उधर से ध्यान हटा लें वह मोरी मे फेंकने योग्य है। क्या वह मै आपको दे सकती हूॅ? उससे तो यही अच्छा है कि आप उसके बिना ही दुखी रहे।

मैं अपने भाग्य पर फिर हाय करती हूॅ। कोई चारा नहीं, कोई बस नहीं, कोई उपाय नहीं। मैं जानती हूॅ आप स्वभाव से ही दीन दुखियों को प्यार करते हैं, आप धन्य है। मैं भी आपको प्यार करती। पर क्या कॅरू प्यार में तो चाहना है और

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