मुझसे अनुरोध किया गया है कि मैं 'अन्तस्तल' पर भूमिका लिखू। पर अन्तस्तल पर 'भूमिका' उठाना---हवा मे किले बनाना-आकाश मे अट्टालिका उठाना है। इसके लिये गन्धर्व नगर निर्माता अलौकिक 'इन्जीनियर' दरकार है। 'अन्तस्तल' एक सच्चे जादू की पिटारी है, मानस भावों के चित्रो का विचित्र एलबम है, अन्दरूनी वायस्कोप की चलती-फिरती-जीती-जागती-तसवीरे है, जिनके दृश्य दिल की ऑखो ही से देखे जा सकते है, चर्मचक्षुओ का यह विषय नहीं है। हृदय की बाते हृदय ही से जानी जा सकती है, जड़ लेखनी का यह काम नहीं है। फिर भी इस अन्तस्तल के विषय मे संक्षेप में कहना चाहे तो यह कह सकते है कि--
"काग़ज पै रख दिया है कलेजा निकाल के"॥
अन्त करण के भावों का सूक्ष्म विश्लेषण मनोविज्ञान-शास्त्री का काम है। आजकल 'मनोविज्ञान' शास्त्र एक बड़े महत्व का विषय होगया है। मनोविज्ञान के आचार्यों ने अपनी गूढ़ गवेपणाओ से-बहुत बारीक छानवीन से---इसे अत्यन्त समुन्नत दशा में पहुँचा दिया है।