पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६

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मनोविज्ञानी का काम, कार्यकारण भाव का निरूपण करना है। क्रोध के आवेश में मनुष्य के मन की क्या दशा होती है, उस समय उसमें किन किन भावों का उदय होता है, क्यों होता है, उनका प्रभाव क्रोधाविष्ट व्यक्ति की वाह्य आकृति पर क्या पड़ता है, इत्यादि बातों की वैज्ञानिक खोज करना मनोविज्ञान के प्रवीण पारखी का काम है। मनोविज्ञान-प्रदर्शन का यह प्रकार जितना महत्वपूर्ण है उतना ही गम्भीर भी है---सुगम नहीं है, रोचक भी नही है-ऐसा होना स्वाभाविक भी है। कृषिशास्त्र का आचार्य या वनस्पति-विज्ञान का विद्वान ईख के क्रम विकाश का इतिहास वैज्ञानिक ढङ्ग से सुनाकर---ईख के पौदे की वृद्धि का विधान और उसमें रससचार का प्रकार समझाकर---श्रोता के लिये विषय मे इतनी सरसता या मधुरता नही ला सकता जितनी हलवाई खॉड खिलाकर या मिठाइयाँ चखाकर। खडसाली या हलवाई गन्ने की वैज्ञानिक व्याख्या नहीं करते। यह उनका काम नहीं। वह यह जानते भी नहीं कि मिठाई मे यह मिठास कैसे और क्यों कर उत्पन्न हो जाता है, फिर भी उनका व्यापार--काम---है बहुत मधुर, इसका साक्षी हर कोई है। यह सार्वजनिक अनुभव है।

कवि या सहृदय लेखक का काम भी कुछ ऐसा ही है। वह मानसिक भावो की वैज्ञानिक व्याख्या करने नहीं बैठता, सिर्फ मनोहर चित्र खीचता है, जिन्हे देखकर सहृदय---'समाखा'- दर्शक फड़क जाता है। कभी उसके मुख से आह निकलती है