पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/५३

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नरक का बास था। मै नाक दवा कर-मन मार कर उसके पास गया। उसने मेरी ओर से मुंँह फेर लिया, बोली नहीं। मैं कुछ न कह सका। मैंने थोड़ा पानी लेकर उसे पिलाना चाहा, पर उसने सतेज स्वर मे कहा--"पापी-विश्वासघाती-छलिया-हट, परे हो, काला मुंँह कर, मैं तेरे हाथ का पानी नहीं पीऊँगी।" मैं कुछ भी न कर सका--मर भी न सका। वह मर गई।

उसके बाद? उसी महीने मे मेरे घर का दिया बुझ गया। जिस दिन मेरा बच्चा मुझे मिला-उसी दिन मेरी स्त्री चल बसी। मैंने रात भर जाग कर, रोकर, बच्चे को जीवित रक्खा।

एक दिन मैं बैठा अपने बच्चे को खिला रहा था। एक आदमी आया। उसकी सूरत भूत जैसी थी। दाढ़ी के बाल चढकर ऊलझ गये थे। ऑखो में कीचड़ भर रही थी और मुख से लार टपक रही थी। शरीर पर वस्त्र नहीं था, केवल एक चिथड़ा था। लड़के पीछे धूल फेक फेक कर हल्ला मचा रहे थे। वह मेरे पास आकर बच्चे को घूरने लगा, बच्चा डर कर मेरी छाती से चिपक गया। मैंने उस पागल को फटकारा। वह मेरी ओर देख कर कुछ बड़बड़ाया। मैंने उसे पहिचान लिया। कलेजा धक् हो गया, रक्त की गति रुक गई। मैंने कुछ पैसे


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