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यह मेरा पहला ही बच्चा था। जब यह उत्पन्न हुआ था तब मेरी अवस्था २३ वर्ष की और मेरी स्त्री की १७ वर्ष की थी। प्रात काल ज्योंही ऊषा की पहली किरण पृथ्वी पर पड़ी, त्योंही बिटुआ का अवतरण हुआ। उस रातभर मै सोया नहीं था। नई बात थी, नया उछाह था, नया सुख था। मैं दौड़ दाई के घर, दौड़ सौर गृह मे, दौड बैठक में फिर रहा था। काम कुछ न था। पर बिना दौड़ धूप किये जी न मानता था। जब दाई ने आकर कहा कि "बख़शीश लाओ, बेटा हुआ,"