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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६५

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और परदेश भीख।" कौन पूछता है? सब इसी की पूजा करते है। इसी का सारा नाता है---इसकी गर्मी ही मज़े की गर्मी, है सच कहा है किसी ने---'धरा पाताल और दिपे कपाल।" इसी की इज्जत, इसी का बल, इसी का सारा कारबार है। है। यही न रहेगा तो शरीर क्या काम आवेगा? कौन खरा है? मुँह बनाकर सामने आवे। सबको जानता हूँ। कमा कर, कौन धनी बना है? राम कहो "घर आये नाग न पूजिये, बॉबई पूजन जाय।" मैं ऐसा अहमक नहीं हूँ। भगवान् ने घर बैठे लक्ष्मी भेजी है--तो मैं क्या ढकेल दूँ? वाह! यह खूब कही। सब के यहाँ इसी तरह चुपचाप आती है। गा बजाकर किसके गई है? लोग तो खून तक करते है। हाँ खून, इसी के लिये। मैंने किसी का गला तो नहीं काटा? जो होगा देखा जायगा। मुझे इतना कच्चा मत समझना---आठों गॉठ कुम्मेत हूँ। इसी को प्रारब्ध कहते हैं। बिना कमाये आवे और वे लाग आवे। और यों थोड़े बहुत झापट झगड़े तो लगे ही रहते है। थोड़ा कसा रहना चाहिये-सब संकट कटेंगे। माल क्या थोड़ा है? अच्छा गिन कर देखूँ। नहीं, यह शायद ठीक न होगा। कोई देख ले तो? अभी मामला रफा दफा तो होने दो। कहीं भागा थोड़ा ही जाता है---यह तो प्राण से भी बढ़कर प्यारा है। यही स्वर्ग है---यही भगवान है---इसी के पीछे


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