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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६७

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क्रोध

सिर्फ हज़ार रुपये ही की तों बात थी? वह भी नहीं दे सका? देना एक ओर रहा―पत्र का उत्तर तक नहीं दिया। एक-दो-तीन-चार-सब पत्र हज़म किये? सब पचा लिये? यही मित्रता थी? मित्रता? मित्रता कहाँ है? मित्रता एक शब्द है, एक आडम्बर है, एक बिडम्बना है, एक छल है―ठीक छल नहीं छल की छाया है। वह भूत की तरह बढ़ती है, रात की तरह फाली है, और पाप की तरह कॉपती है।

तुम लखपती थे? वे तुम्हारे लाख रुपये सुरक्षित लोहे के