पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


सन्दूकों मे बन्द रखे हैं? और मैं? हाड़ मॉस का आदमी, जिसकी छाती मे हृदय---जीवित हृदय, धरोहर धरा है--इस तरह यातमा--अपनान--कष्ट और भयङ्करता मे झकोरे ले रहा हूँ? मित्रता की ऐसी तैसी, मित्रता के बाप की ऐसी तैसी। निष्ठुर पाखण्डी सोने के डले। बिना तपाये और कुचले तुझमे नर्मी आना ही असम्भव था!!!

तुम! तुम मेरे भक्त थे; क्या यह सच है? भक्ति किसे कहते है मालूम है? चुप रहो, बको मत, ज्ञान मत बघारो, मैं ही मूर्ख हूँ। मेरे उपदेशों को तुमने मनोहर कहानी समझा होगा! ठीक, अब समझा, तुम मनोरंजन ही के लिये मेरे पास आते थे! धीरे धीरे अब सब दीख पड़ता है। जब मैं आवेश मे आकर अपने आविष्कृत सिद्धान्त जोर शोर से तुम्हारे सामने बोलना था, तब, तुम हॅसते थे। उस तुम्हारी हँसी का तब मतलब नहीं समझा था, अब समझा। उफ, ऐसे भयंकर गम्भीर सिद्धान्तों को तुम मनोरंजन समझ कर सुनते थे? ठीक है। पिशाचों को श्मशान मे नृत्य ही की सूझती है। प्रकृति कहाँ जायगी! पर मुझे मनुष्य की परख नहीं हुई, मैं पूरा वज्रमूर्ख हूँ। मैने भैस के आगे बीन बजाकर सुनाई थी---हाय करम! हाय तकदीर!!!

कुछ भी समझ नहीं पड़ता। अचम्भा है। मनुष्य रूप


५२