पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६९

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पाकर मनुष्य हृदय से शून्य कैसे जीते हैं। अमीरों के हृदय कहाँ हैं! सारे अमीर मर कर भेड़िये, सॉप, बिच्छू बनेगे। ये मनुष्य-जन्म में अपनी बुद्धि से जिस रूप का अभ्यास कर रहे है, वही रूप इन्हें मिलेगा! वाह! बड़ा अच्छा तुम्हारा भविष्य है। मैंने सुना है--पुराने खजानों में सांपों का पहरा होता है। तुम सब धनी लोग वही सॉप हो। फर्क इतना है तुम सब बनने वाले हो और वे बन गये हैं-वे तुम से सिर्फ एक जन्म आगे हैं। उनके तुम्हारे बीच मे केवल एक मृत्यु का पुल है। उसे पार किया कि बस असली रूप पा गये।

हे सफेद पगडी और सफेद अँगरखे वालों। हे टमटम, मोटरगाड़ियों मे खिचडने वालों! हे अपाहिजों! अभागों! रोगियों! निपूतो! हीजड़ों! तुम पर मुझे दया आती है। किन्तु तुम्हारा भविष्य देख कर मुझे सन्तोष होता है-सुख मिलता है।

मेरा बच्चा मर गया। उसे दूध नहीं मिला। मेरी स्त्री के स्तनो मे जितना दूध था-वह सब वह पिला चुकी। जब निबट गया, तब लाचार हो गई। बाजार से मिला नहीं। पैसा न था बिना पैसे बाजार मे कुछ नहीं मिलता। पहले, जब संसार में बाजार नहीं थे-घर थे, तब सबको सब कुछ मिलता था। चीज़ के होते कोई तरसता न था। अब खुल गये बाज़ार और बाज़ार


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